परिंदा
आज एक परिंदा संदेश
लेकर आया मेरे ठिकाने
पर किसने पंतग का कारोबार
जमाया आंनददायी सुखदाई
रंग बिरंगी पतंगों से संसार सजाया
पर हमें बक्श दो उड़ने के लिए
जगह तज दो एक आसमां ही तो
है मांझो से उसे बक्श दो गिरते
है मरते हैं तड़फते है पर मौन है
आंखों से कह देते आंसू भी नहीं
बहते हैं पर पंख फड़फड़ाते हम परीदें
बस मुख से लाचार है वरना आसमां
पे हमारा अधिकार है ।
अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश
