लालबाग के राजा की पहली झलक,गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया:महाराष्ट्र

गणेश उत्सव से पहले महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में लालबाग के राजा की पहली झलक लोगों को देखने को मिली. इस दौरान पहली झलक देखने के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा.
(लालबाग के राजा की पहली झलक) ( Image Source : Lalbaugcha Raja You Tube )
मुंबई में भक्तों के लिए गणेश उत्सव से पहले लालबाग के राजा की पहली झलक सामने आ गई है. नगाड़ों और नृत्य के बीच पहली झलक भक्तों ने देखी. इस दौरान लोगों की काफी भीड़ देखने को मिली. भक्तों ने जयकारों के बीच लालबाग के राजा का स्वागत किया. गौरतलब है कि इस बार गणेश उत्सव की शुरुआत 19 सितंबर से हो रही है. ये उत्सव 10 दिनों तक चलेगा और 28 सितंबर को गणेश उत्सव का समान हो जाएगा. पूरे महाराष्ट्र में इसकी अलग ही धूम दिखाई पड़ती है. मुंबई में लालबाग का राजा सबसे लोकप्रिय गणेश मंडल माना जाता है. बड़े-बड़े सेलिब्रेटी यहां आकर भगवान गणेश का दर्शन करते हैं. इसकी शुरुआत 1935 में चिंचपोकली के कोलियों ने की थी. ये मुंबई के परेल इलाके में स्थित हैं.
लालबाग के राजा के मंडल में लोगों का हुजूम सबसे ज्यादा होता है. माना जाता है कि दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान आम से लेकर खास तक हर कोई इनकी एक झलक पाने के लिए बेताब होता है. कहा जाता है कि यहां दर्शन करने वाले भक्तों की हर मनोकामना को भगवान गणेश पूरी करते हैं. यहां गणपति बप्पा का दर्शन पाने के लिए गणेश उत्सव के दौरान लोगों की लंबी कतार देखने को मिलती है. दसवें दिन मूर्ति विसर्जन किया जाता है. इसमें भी भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं.
पिछले साल लालबाग के राजा पब्लिक गणेशोत्सव मंडल को लगा था जुर्माना बता दें कि पिछले साल लालबाग के राजा पब्लिक गणेशोत्सव मंडल पर बीएमसी ने जुर्माना लगाया था. 2022 में लालबाग के राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल पर 3 लाख 66 हजार रुपये का जुर्माना लगा था. दरअसल, यह जुमाना गड्ढों को लेकर लगाया गया था. फुटपाथ पर 53 और सड़क पर 150 गड्ढे खोदे गए थे. हर गड्ढे के लिए 2000 रुपये का जुर्माना बीएमसी ने लगाया था. हर साल मंडप तैयार करने के लिए मुंबई नगर निगम से अनुमति लेनी होती है.
गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया की उत्पत्ति कैसे हुई ?
इसकी एक रोचक कहानी है। यह कहानी है एक भक्त और भगवान की, जहां भक्त की भक्ति और आस्था के कारण भक्त के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया भगवान का नाम। गणपति की आराधना के लिए बप्पा के भक्तों की जुबान से ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’ का जयकारा हमेशा ही सुनाई देता है। कई बार आपने भी यह जयकारा लगाया होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर यह जयकारा क्यों लगाते हैं ? कहां से इस जयकारे की उत्पत्ति हुई ?
गणपति के इस जयकारे की जड़ें महाराष्ट्र के पुणे से 21 कि.मी. दूर बसे चिंचवाड़ गांव में हैं। चिंचवाड़ जन्मस्थली है एक ऐसे संत की जिसकी भक्ति और आस्था ने लिख दी एक ऐसी कहानी जिसके बाद उनके नाम के साथ ही जुड़ गया गणपति का भी नाम। पंद्रहवीं शताब्दी में एक संत हुए, जिनका नाम था मोरया गोसावी। कहते हैं भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही मोरया गोसावी का जन्म हुआ था और मोरया गोसावी भी अपने माता-पिता की तरह भगवान गणेश की पूजा आराधना करते थे।
हर साल गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर मोरया चिंचवाड़ से मोरगांव गणेश की पूजा करने के लिए पैदल जाया करते थे। कहा जाता है कि बढ़ती उम्र की वजह से एक दिन खुद भगवान गणेश उनके सपने में आए और उनसे कहा कि उनकी मूर्त उन्हें नदी में मिलेगी और ठीक वैसा ही हुआ, नदी में स्नान के दौरान उन्हें गणेश जी की मूर्त मिली।
इस घटना के बाद लोग यह मानने लगे कि गणपति बप्पा का कोई भक्त है तो वह सिर्फ और सिर्फ मोरया गोसावी। तभी से भक्त चिंचवाड़ गांव में मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे। कहते हैं जब भक्त गोसावी जी के पैर छूकर मोरया कहते और संत मोरया अपने भक्तों से मंगलमूर्ति कहते थे और फिर ऐसे शुरूआत हुई मंगलमूर्ति मोरया की। जो जयकारा पुणे के पास चिंचवाड़ गांव से शुरू हुआ वह जयकारा आज गणपति बप्पा के हर भक्त की जुबान पर है लेकिन जहां तक गणपति पूजा के सार्वजनिक आयोजन का सवाल है तो इसकी शुरूआत स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर लोकमान्य तिलक ने की थी।
