काशी से गंगा विलास की सैर ,छपरा जाते जाते फंसा पैर ! क्रूज गंगा विलास ! जानिए कैसे
काशी से गंगा विलास की सैर ,छपरा जाते जाते फंसा पैर ! क्रूज गंगा विलास
काशी से छूटी गंगा विलास बोट तीसरे ही दिन दलदल में फंस गई। देश का लोकतंत्र और आजादी वैसे ही दलदल में फंसी हुई है। प्रसार माध्यमों पर दबाव है। स्वतंत्रता का आखिरी गढ़ ‘न्यायपालिका’ भी ढहती नजर आ रही है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा को प्रतिसाद मिल रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के पटेल चौक पर ‘रोड शो’ किया। इसे क्या कहा जाए?
अखबारों में खबरें पढ़कर पहले मन में क्रोध पैदा होता था। अब भरपूर मनोरंजन होता है। अखबारों के अधिकांश जगहों पर अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया छा गया है। वहां तो खबरों का ‘हास्य मेला’ ही चल रहा है। फिलहाल, भारी मनोरंजन ही चल रहा है। इसलिए महाराष्ट्र का भविष्य क्या? देश का क्या होगा? ऐसे व्यर्थ सवाल मन में उठते ही नहीं हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह झारखंड गए। वहां भाजपा की सरकार नहीं है। हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं। उनकी सरकार को लक्षित करते हुए हमारे गृहमंत्री ने कहा, ‘युवाओं को नौकरी देने की ताकत नहीं होगी, तो कुर्सी खाली करो!’ श्री शाह यह भूल गए कि वे देश के गृहमंत्री हैं और युवाओं को नौकरी देना, यह उनकी केंद्र सरकार का कर्तव्य है। वैसा वचन लेकर वे दो बार देश की सत्ता में आए, लेकिन क्या युवाओं को नौकरी मिली? रोजगार के तमाम साधन एक ही राज्य गुजरात की ओर मोड़े जा रहे हैं। इस सच्चाई को आज कोई भी नकार नहीं सकता है। कोई भी अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस बारे में बात नहीं करेगा, क्योंकि अन्य सभी तंत्रों की तरह मीडिया भी दबाव में है।
द्वेष की राजनीति और बाढ़ सी आ गयी है
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ‘एंकर’ देश में द्वेष का माहौल तैयार कर रहे हैं। जाति-धर्म का झगड़ा भड़का रहे हैं। इसके घातक होने का निष्कर्ष देश के सर्वोच्च न्यायालय ने निकाला है। भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक नीति को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आगे बढ़ा रहा है। इसलिए मीडिया की आजादी यह सिर्फ एक मुखौटा भर बनकर रह गई। वर्तमान शासकों को उनके खिलाफ की जानेवाली टिप्पणियां पसंद नहीं आती हैं। इसलिए अपने पसंदीदा कारोबारियों से कहकर इन सभी मीडिया संस्थानों को खरीदने का सत्र फिलहाल चल रहा है। देश के तमाम स्तंभ उद्योगपतियों द्वारा खरीद लिए जाने के बाद बचा क्या? यह सवाल उठना चाहिए। पंडित गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उस समय नेहरू द्वारा स्थापित किया गया पत्र ‘नेशनल हेराल्ड’ कई बार पंत सरकार के कामकाज की आलोचना करता था। पंत को ये पसंद नहीं आया। उन्होंने अपने सहयोगियों के जरिए ‘हेराल्ड’ के शेयर खरीदने की मुहिम चलाई थी। इंदिरा गांधी ने नेहरू को पत्र लिखा और कहा कि ‘पंतजी को केवल ‘जी हजूरी’ करनेवाले चाहिए।’ ‘हेराल्ड’ की आलोचना वे सह नहीं पाते हैं। वे जिन्हें ‘हेराल्ड’ के निदेशक मंडल में लेनेवाले हैं, उनमें से एक कालाबाजारी वाला है, ये हर कोई जानता है। आप बहुत सी चीजें चला लेते हो लेकिन जिस पत्र से आपका संबंध है वो कालाबाजारी वाले चलाएं, ऐसा आपको लगता है क्या? आप पंतजी को ‘हेराल्ड’ में दखल देने से रोकें। वे सरकारी अधिकारियों का भी इस्तेमाल शेयर खरीदने, पैसे जुटाने के लिए कर रहे हैं।’ इस पत्र का नेहरू ने सौम्य उत्तर देते हुए सलाह दी कि इतना कड़ा रुख अपनाने का कोई कारण नहीं है। आगे इंदिरा गांधी ने लिखा कि ‘आपका संतुलन नहीं बिगड़ा। इस प्रकार ‘हेराल्ड’ में ईमानदार लोग भी छोड़कर चले जाएंगे और एक दिन यह बंद हो जाएगा।’ यह सामान्य बात है, ऐसा कहते हुए वे लिखती हैं कि मुख्य समस्या कुल मिलाकर जो अधोगति हो रही है वो है। ये चीजें छोटी हो सकती हैं, लेकिन ये छोटी चीजें दीमक लगने की शुरुआत के संकेत हैं। ऐसा सभी राज्यों में हुआ है। इसलिए कांग्रेस के प्रति लोगों में नाराजगी है। यह नाराजगी नहीं ऐसा आप कह सकते हैं क्या? हमारे अन्य अनेक दोषों के साथ पाखंड जोड़ने का कोई कारण नहीं है। ये सब इंदिरा गांधी ने साहसपूर्वक अपने पिता यानी प्रधानमंत्री नेहरू को लिखा, लेकिन जब वे खुद प्रधानमंत्री पद पर थीं तब उन्होंने इन विचारों को ध्यान में नहीं रखा। उससे ही आगे आपातकाल और अखबारों पर सेंसरशिप आई। उस सेंसरशिप के खिलाफ जो लड़े स्वतंत्रता भोगनेवाले वही लोग आज सत्ता में हैं और उन्होंने तो सभी ही मामलों में ढोंग की पराकाष्ठा को पार कर दिया है!